सवाल-जवाब
यदि आप किसी को रोटी खिलाते हैं तो उसका सिर्फ एक दिन पेट भरेगा, लेकिन आप उसे रोटी बनाने का तरीका सीखा देते हैं तो जिंदगी भर पेट भरेगा - श्री राजीव दीक्षित जी
- प्राचीन गुरूकुलों में वेद, दर्शन, उपनिषद, व्याकरण आदि आर्ष ग्रन्थ पढ़ाये जाने के साथ साथ गणित, भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, चिकित्सा, भूगोल, खगोल, अन्तरिक्ष , गृह निर्माण, शिल्प, कला, संगीत, तकनीकी, राजनीती, अर्थशास्त्र, न्याय, विमान विद्या, युद्ध, अयुद्ध निर्माण, योग, यज्ञ एवं कृषि इत्यादि जो मनुष्य के भौतिक तथा आध्यात्मिक उन्नति के लिये आवश्यक होते हैं वे सभी पढ़ाये जाते थे ।
राष्ट्र की खोई गरिमा गुरूकुल शिक्षा प्रणाली की पुनः स्थापना करने से आयेगी ।
हम सभी उच्च शिक्षा व माध्यम शिक्षा से निकले है। लेकिन जो बात हमें पढ़ाई जाती है, कि भारत सबसे ज्यादा पिछ़ड़ा देश रहा। फिर पढ़ाया जाता है कि दुनिया में सबसे ज्यादा गरीब देश भारत रहा, भारत ने दुनिया को कुछ नही दिया, फिर पढ़ाया जाता है कि यदि अंग्रेज भारत नही आते तो कुछ नही होता, अंग्रेज नही आते तो शिक्षा नही होती, अंग्रेज नही आते तो विज्ञान नही आता, अंग्रेज नही आते तो टेक्नोलॉजी नही आती, अंग्रेज नही आते तो ट्रेन नही आती, अंग्रेज नही आते तो हवाई जहाज नही होता, ऐसी बाते हम बचपन से पढ़ते आते है, सुनते आते हैं, और आपस में चर्चाये भी करते हैं। लेकिन सबसे ज्यादा दुख और दुर्भाग्य इस बात का है कि अध्यापक हम सब को यह पढ़ाते हैं।
भाषाएँ :-
संस्कृत, प्राकृत, गुजराती, हिंदी एवं अंग्रेजी ।
---------------------------------
वैदिक गणित :- महर्षिओं द्वारा रचित शास्त्र ग्रंथो में दर्शाए गए १६ सूत्रों के आधार पर निर्मित गणना पद्धति का अभ्यास ।
---------------------------------
गणित :- गणना की सरल और शीघ्र पद्धतियाँ एवं व्यवहारिक गणनाओं का अध्ययन ।
---------------------------------
ज्योतिष् शास्त्र :- पंचांग, होरा, सुवेला, चोघडीया, मुहूर्त, कुंडली-फ़लादेश, शुकन शास्त्र, हस्त रेखा, अष्टांग निमित्त इत्यादि का अध्ययन ।
---------------------------------
आयुर्वेद :- दिनचर्या, ऋतुचर्या एवं जीवनचर्या के विषय पर आधारित ग्रंथो का अध्ययन ।
---------------------------------
वास्तु शास्त्र :- गृह, मंदिर एवं व्यापारिक संस्थान के निर्माण हेतु वास्तु शास्त्र के आधार पर पूर्वाचार्यो रचित शास्त्रों का अध्ययन ।
---------------------------------
धर्म शास्त्र :- आध्यात्मिक शक्ति के विकास में सहायक धर्म ग्रंथो का अध्ययन ।
---------------------------------
इतिहास :- रामायण, महाभारत, जैन धर्म का इतिहास एवं विश्व की विभिन्न परम्पराओं का ज्ञान ।
---------------------------------
योग शास्त्र :- विविध योगासन, प्राणायाम, ध्यान, साधना आदि का ज्ञान ।
---------------------------------
न्याय शास्त्र :- तर्क संग्रह, मुक्तावली इत्यादि विषयों का ज्ञान ।
---------------------------------
व्यवसाय विद्या :- हिसाब लेन-देन, ख़रीदना-बेचना, उत्पादन व निर्माण, व्यवस्था व संचालन, प्रचार-प्रसार इत्यादि का अध्ययन ।
---------------------------------
अर्थ शास्त्र :- वित्तीय व्यवस्था एवं मूल्याङ्कन, व्यावसायिक परिस्थिति इत्यादि का अध्ययन ।
---------------------------------
कृषि व पशु शास्त्र :- आबोहवा, भूमि, कृषि, बियारण, जल इत्यादि के माध्यम से पशु आधारित जैविक कृषि एवं पशु पालन का ज्ञान ।
---------------------------------
पर्यावरण शास्त्र :- जल, जमीं, जंगल एवं पशु संबधित विषयों का ज्ञान ।
---------------------------------
समाज शास्त्र :- सामाजिक व्यवस्था, ग्राम्य रचना, व्यक्ति विशेष के जीवन चरित्र इत्यादि का विवरण ।
---------------------------------
भूगोल शास्त्र :- देश, दुनिया, समुद्र, पर्वत, खंड, उपखंड इत्यादि विषयों का ज्ञान और संग्रहणी एवं क्षेत्रसमास का अध्ययन।
---------------------------------
खगोल शास्त्र :- अंतरिक्ष का अवलोकन एवं ग्रह, तारा और सूर्य-चन्द्र का ज्ञान ।
---------------------------------
वैदिक गणित :- महर्षिओं द्वारा रचित शास्त्र ग्रंथो में दर्शाए गए १६ सूत्रों के आधार पर निर्मित गणना पद्धति का अभ्यास ।
---------------------------------
गणित :- गणना की सरल और शीघ्र पद्धतियाँ एवं व्यवहारिक गणनाओं का अध्ययन ।
---------------------------------
ज्योतिष् शास्त्र :- पंचांग, होरा, सुवेला, चोघडीया, मुहूर्त, कुंडली-फ़लादेश, शुकन शास्त्र, हस्त रेखा, अष्टांग निमित्त इत्यादि का अध्ययन ।
---------------------------------
आयुर्वेद :- दिनचर्या, ऋतुचर्या एवं जीवनचर्या के विषय पर आधारित ग्रंथो का अध्ययन ।
---------------------------------
वास्तु शास्त्र :- गृह, मंदिर एवं व्यापारिक संस्थान के निर्माण हेतु वास्तु शास्त्र के आधार पर पूर्वाचार्यो रचित शास्त्रों का अध्ययन ।
---------------------------------
धर्म शास्त्र :- आध्यात्मिक शक्ति के विकास में सहायक धर्म ग्रंथो का अध्ययन ।
---------------------------------
इतिहास :- रामायण, महाभारत, जैन धर्म का इतिहास एवं विश्व की विभिन्न परम्पराओं का ज्ञान ।
---------------------------------
योग शास्त्र :- विविध योगासन, प्राणायाम, ध्यान, साधना आदि का ज्ञान ।
---------------------------------
न्याय शास्त्र :- तर्क संग्रह, मुक्तावली इत्यादि विषयों का ज्ञान ।
---------------------------------
व्यवसाय विद्या :- हिसाब लेन-देन, ख़रीदना-बेचना, उत्पादन व निर्माण, व्यवस्था व संचालन, प्रचार-प्रसार इत्यादि का अध्ययन ।
---------------------------------
अर्थ शास्त्र :- वित्तीय व्यवस्था एवं मूल्याङ्कन, व्यावसायिक परिस्थिति इत्यादि का अध्ययन ।
---------------------------------
कृषि व पशु शास्त्र :- आबोहवा, भूमि, कृषि, बियारण, जल इत्यादि के माध्यम से पशु आधारित जैविक कृषि एवं पशु पालन का ज्ञान ।
---------------------------------
पर्यावरण शास्त्र :- जल, जमीं, जंगल एवं पशु संबधित विषयों का ज्ञान ।
---------------------------------
समाज शास्त्र :- सामाजिक व्यवस्था, ग्राम्य रचना, व्यक्ति विशेष के जीवन चरित्र इत्यादि का विवरण ।
---------------------------------
भूगोल शास्त्र :- देश, दुनिया, समुद्र, पर्वत, खंड, उपखंड इत्यादि विषयों का ज्ञान और संग्रहणी एवं क्षेत्रसमास का अध्ययन।
---------------------------------
खगोल शास्त्र :- अंतरिक्ष का अवलोकन एवं ग्रह, तारा और सूर्य-चन्द्र का ज्ञान ।
गायन : -
भरतमुनि रचित नाट्य शास्त्र आधारित जाती गायन और शास्त्रीय, सुगम एवं विभिन्न रागों का ज्ञान व तालीम ।
---------------------------------
वादन : - जलतरंग, सितार, ढोलक, तबला, हार्मोनियम, डफ, मंजीरा, पखवाज, संतूर, वायोलिन, सारंगी, बांसुरी, सरोद, मृदंग, नगाड़ा, शंख, तानपुरा, करताल इत्यादि प्राचीन वाद्यों की तालीम ।
---------------------------------
नृत्य कला :- कथ्थक, भरतनाट्यम्, लोकनृत्य, रास, दीवा नृत्य, बाम्बू नृत्य, भांगड़ा नृत्य, चामर नृत्य, डांगी नृत्य, झांझ नृत्य इत्यादि की तालीम ।
---------------------------------
चित्र कला :- रेखा चित्र, आकृतियाँ, वास्तविक चित्र, वार्ली पेन्टिंग, व्यंग चित्र, छाया चित्र, ग्लास पेन्टिंग, क्राफ्ट इत्यादि की तालीम ।
---------------------------------
अभिनय / नाट्यकला :- नाटक, एकांकी नाटक, अभिनय, संवाद, मुखमुद्राएँ और शारीरिक चेष्टाएँ ।
---------------------------------
परामेधा (मिड ब्रेन) :- आँखों पर पट्टी बांध कर रूबिक्स क्यूब को सुव्यवस्थित करना, स्पर्श मात्र से रंग परखना, सूंघकर करेंसी नोटों को परखना एवं नंबर बताना इत्यादि ।
---------------------------------
संभाषण :- वक्तृत्व, भाषण, कहानी कथन इत्यादि की तालीम ।
---------------------------------
जादू कला :- जादू के मूलभूत सिद्धांत व विभिन्न खेल ।
---------------------------------
पाक कला :- स्वास्थ्य अनुकूल षड् रसयुक्त, स्वादिष्ट एवं ऋतु अनुरूप विभिन्न प्रकार के भोजन बनाना ।
---------------------------------
सिलाई कला / गुंथन कला :- गुंथाई (भरतकाम), विविध टांकें का ज्ञान, कांतना, चरखा चलाना इत्यादि ।
---------------------------------
शृंगार कला :- मंडप-शृंगार, गृह-शृंगार, मंच - शृंगार ।
---------------------------------
लेखन कला :- हस्तलेखन, सुलेखन (कैलीग्राफी), कहानी लेखन, अहेवाल लेखन, योजना पत्र, भाषण, काव्य, नाटक , संवाद इत्यादि ।
---------------------------------
अन्य कला :- लीपन कला, मिट्टी कला, मोतीकाम, एक्यूप्रेशर, नेतृत्व कला, गहूँली, रंगोली, कोठार व्यवस्था, अतिथि सत्कार इत्यादि ।
---------------------------------
वादन : - जलतरंग, सितार, ढोलक, तबला, हार्मोनियम, डफ, मंजीरा, पखवाज, संतूर, वायोलिन, सारंगी, बांसुरी, सरोद, मृदंग, नगाड़ा, शंख, तानपुरा, करताल इत्यादि प्राचीन वाद्यों की तालीम ।
---------------------------------
नृत्य कला :- कथ्थक, भरतनाट्यम्, लोकनृत्य, रास, दीवा नृत्य, बाम्बू नृत्य, भांगड़ा नृत्य, चामर नृत्य, डांगी नृत्य, झांझ नृत्य इत्यादि की तालीम ।
---------------------------------
चित्र कला :- रेखा चित्र, आकृतियाँ, वास्तविक चित्र, वार्ली पेन्टिंग, व्यंग चित्र, छाया चित्र, ग्लास पेन्टिंग, क्राफ्ट इत्यादि की तालीम ।
---------------------------------
अभिनय / नाट्यकला :- नाटक, एकांकी नाटक, अभिनय, संवाद, मुखमुद्राएँ और शारीरिक चेष्टाएँ ।
---------------------------------
परामेधा (मिड ब्रेन) :- आँखों पर पट्टी बांध कर रूबिक्स क्यूब को सुव्यवस्थित करना, स्पर्श मात्र से रंग परखना, सूंघकर करेंसी नोटों को परखना एवं नंबर बताना इत्यादि ।
---------------------------------
संभाषण :- वक्तृत्व, भाषण, कहानी कथन इत्यादि की तालीम ।
---------------------------------
जादू कला :- जादू के मूलभूत सिद्धांत व विभिन्न खेल ।
---------------------------------
पाक कला :- स्वास्थ्य अनुकूल षड् रसयुक्त, स्वादिष्ट एवं ऋतु अनुरूप विभिन्न प्रकार के भोजन बनाना ।
---------------------------------
सिलाई कला / गुंथन कला :- गुंथाई (भरतकाम), विविध टांकें का ज्ञान, कांतना, चरखा चलाना इत्यादि ।
---------------------------------
शृंगार कला :- मंडप-शृंगार, गृह-शृंगार, मंच - शृंगार ।
---------------------------------
लेखन कला :- हस्तलेखन, सुलेखन (कैलीग्राफी), कहानी लेखन, अहेवाल लेखन, योजना पत्र, भाषण, काव्य, नाटक , संवाद इत्यादि ।
---------------------------------
अन्य कला :- लीपन कला, मिट्टी कला, मोतीकाम, एक्यूप्रेशर, नेतृत्व कला, गहूँली, रंगोली, कोठार व्यवस्था, अतिथि सत्कार इत्यादि ।
उत्तिष्ठ -
ब्रह्म मुहूर्त में उठना ।
---------------------------------
योग - योग, ध्यान व प्राणायाम ।
---------------------------------
दर्शन- दर्शन, प्रार्थना एवं पच्चक्खाण ।
---------------------------------
गौ-दोहन- गौ-दोहन, त्रिफलांजन, दंतमंजन, धारोष्ण दुग्धपान एवं नवकारशी ।
---------------------------------
पठन- संस्कृत व धार्मिक पठन ।
---------------------------------
प्रभु पूजा- स्नान व प्रभु पूजा ।
---------------------------------
भोजन- मध्याह्न भोजन एवं वामकुक्षी ।
---------------------------------
अध्ययन- ज्योतिष, वैदिक गणित, चित्रकला, संगीत इत्यादि विभिन्न विषयों का अध्ययन ।
---------------------------------
तालीम एवं क्रीडा- रोप-पोल मलखम, कसरत - व्यायाम, घुड़सवारी, विभिन्न शारीरिक तालीम एवं क्रीडा ।
---------------------------------
सायं भोजन- सायं भोजन, स्वैर विहार इत्यादि ।
---------------------------------
प्रभु भक्ति- दर्शन, संध्या भक्ति, प्रभु भक्ति इत्यादि ।
---------------------------------
गायन-वादन- गायन-वादन, नाट्य, वक्तृत्व इत्यादि कला-कुशलताओं का प्रशिक्षण ।
---------------------------------
योग - योग, ध्यान व प्राणायाम ।
---------------------------------
दर्शन- दर्शन, प्रार्थना एवं पच्चक्खाण ।
---------------------------------
गौ-दोहन- गौ-दोहन, त्रिफलांजन, दंतमंजन, धारोष्ण दुग्धपान एवं नवकारशी ।
---------------------------------
पठन- संस्कृत व धार्मिक पठन ।
---------------------------------
प्रभु पूजा- स्नान व प्रभु पूजा ।
---------------------------------
भोजन- मध्याह्न भोजन एवं वामकुक्षी ।
---------------------------------
अध्ययन- ज्योतिष, वैदिक गणित, चित्रकला, संगीत इत्यादि विभिन्न विषयों का अध्ययन ।
---------------------------------
तालीम एवं क्रीडा- रोप-पोल मलखम, कसरत - व्यायाम, घुड़सवारी, विभिन्न शारीरिक तालीम एवं क्रीडा ।
---------------------------------
सायं भोजन- सायं भोजन, स्वैर विहार इत्यादि ।
---------------------------------
प्रभु भक्ति- दर्शन, संध्या भक्ति, प्रभु भक्ति इत्यादि ।
---------------------------------
गायन-वादन- गायन-वादन, नाट्य, वक्तृत्व इत्यादि कला-कुशलताओं का प्रशिक्षण ।
साक्षरता विषयक-कुशलता :-
श्रवण, पठन, लेखन ।
---------------------------------
अश्व संचालन : घोड़ा एवं घोड़ागाड़ी कुशलता से चलाना, अश्व के ऊपर विविध प्रकार के आसन करना, अश्व के साथ विविध करतब करना इत्यादि ।
---------------------------------
कसरत - व्यायाम : विविध प्रकार की दौड, लंबी कूद, उंची कूद, गोला फेंक, चक्र फेंक, बरछी (भाला) फेंक इत्यादि ।
---------------------------------
शरीर सौष्ठव की तालीम व क्रियाएं : रोप मलखम, पोल मलखम, जिम्नास्टिक, लाठी दांव, जूडो, कुश्ती, कराटे, मार्शल आर्ट, नून चाकू इत्यादि ।
---------------------------------
स्वदेशी खेल-कूद : २०० से अधिक देशी खेल में कुशलता ।
---------------------------------
आयोजन (Management) : कार्यक्रम-महोत्सव, यात्रा प्रवास इत्यादि का आयोजन करने में कुशलता ।
---------------------------------
भक्ति विषयक : आरती उतारना, भगवान् की अंगरचना करना, दिया तैयार करना, धूप करना इत्यादि ।
---------------------------------
गौशाला विषयक : गौ दोहन, गोबर के कंडे (छाणा) थापना, दही मंथन इत्यादि ।
---------------------------------
रोज-ब-रोज की बातें : वस्त्र धोना, साफ-सफाई करना, आलमारी - पेटी को सजाना इत्यादि ।
---------------------------------
अश्व संचालन : घोड़ा एवं घोड़ागाड़ी कुशलता से चलाना, अश्व के ऊपर विविध प्रकार के आसन करना, अश्व के साथ विविध करतब करना इत्यादि ।
---------------------------------
कसरत - व्यायाम : विविध प्रकार की दौड, लंबी कूद, उंची कूद, गोला फेंक, चक्र फेंक, बरछी (भाला) फेंक इत्यादि ।
---------------------------------
शरीर सौष्ठव की तालीम व क्रियाएं : रोप मलखम, पोल मलखम, जिम्नास्टिक, लाठी दांव, जूडो, कुश्ती, कराटे, मार्शल आर्ट, नून चाकू इत्यादि ।
---------------------------------
स्वदेशी खेल-कूद : २०० से अधिक देशी खेल में कुशलता ।
---------------------------------
आयोजन (Management) : कार्यक्रम-महोत्सव, यात्रा प्रवास इत्यादि का आयोजन करने में कुशलता ।
---------------------------------
भक्ति विषयक : आरती उतारना, भगवान् की अंगरचना करना, दिया तैयार करना, धूप करना इत्यादि ।
---------------------------------
गौशाला विषयक : गौ दोहन, गोबर के कंडे (छाणा) थापना, दही मंथन इत्यादि ।
---------------------------------
रोज-ब-रोज की बातें : वस्त्र धोना, साफ-सफाई करना, आलमारी - पेटी को सजाना इत्यादि ।
न्याय, नीतिमत्ता, प्रामाणिकता, सदाचार, संतोष, मैत्री एवं नम्रता जैसे गुणों का विकास एवं उच्च नैतिक मूल्यों से समाज एवं परिवार का गौरव बढ़ा शके ऐसे सशक्त छात्रों का निर्माण हमारी प्राथमिकता हैं ।
घर में न रहकर गुरू के अधीन रहते हुए ब्रह्मचर्य पूर्वक त्याग, तपस्या युक्त जीवन यापन करते हुए विद्या अर्जन करना गुरूकुल शिक्षा प्रणाली है ।
जो आचार्य कुल में रहकर शरीर की रक्षा, चित की रक्षा करते हुए विद्या के लिये प्रयत्न करे उसे ब्रह्मचारी या ब्रह्मचारिणी कहते हैं ।
गुरूकुल में 6 वर्ष की आयु में प्रवेश होता है । या अपवाद रूप में किसी गुरूकुल में बड़ी आयु में भी प्रवेश होता ही है
गुरूकुल में अमीर, गरीब, राजा, दरिद्र, आदिवासी, अछूत सबका समान रूप से प्रवेश हो सकता है, कोई भेद भाव नहीं है ।
गुरूकुलीय विद्यार्थीयों का भोजन शुद्ध, सात्विक तथा वस्त्र सभ्य शिष्ट आदर्श होते हैं ।
प्राचीन गुरूकुलों में वेद, दर्शन, उपनिषद, व्याकरण आदि आर्ष ग्रन्थ पढ़ाये जाने के साथ साथ गणित, भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, चिकित्सा, भूगोल, खगोल, अन्तरिक्ष , गृह निर्माण, शिल्प, कला, संगीत, तकनीकी, राजनीती, अर्थशास्त्र, न्याय, विमान विद्या, युद्ध, अयुद्ध निर्माण, योग, यज्ञ एवं कृषि इत्यादि जो मनुष्य के भौतिक तथा आध्यात्मिक उन्नति के लिये आवश्यक होते हैं वे सभी पढ़ाये जाते थे ।
गुरूकुल में पढ़ाई का समय सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक होता था ।
सामान्यतः प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर विद्यार्थीगण उठते थे, शौच आदि क्रिया से निवृत होकर ऊषा पान ( तांबे के बर्तन का जल पीना ) करते थे । फिर व्यायाम, स्नान, संध्या, प्राणायाम, अग्निहोत्र ( यज्ञ ) आदि के बाद भोजन करते थे । और फिर विद्या का अध्ययन आरम्भ होता था । जिसमें महत्वपूर्ण विषय आते थे । कक्षाओं में न पढ़ाकर वृक्षों के नीचे या प्राकृतिक वातावरण में पढ़ाया जाता था । सूर्यास्त के समय संध्या अग्निहोत्र आदि से निवृत होकर विद्यार्थी रात्री का भोजन करके विश्राम करते थे । भोजन केवल दो बार ही मिलता था । क्योंकि मनुष्य को दीर्घायु के लिये दो समय ही भोजन करना उचित है ।
प्राचीन काल में गुरूकुल शिक्षा निःशुल्क थी ।
गुरुकुलों का खर्च ग्रामीणों के दान से और सरकार के द्वारा चला करता था ।
गुरूकुल ग्रामों से दूर अरण्य ( वन ) में बसाये जाते थे ।
गुरूकुल बालकों और बालिकाओं के दोनो के हुआ करते थे । और दोनों के गुरूकुलों में दूरी कम से कम 12 कोस की हुआ करती थी ।
गुरूकुलों की शिक्षा का माध्यम संस्कृत ही था और सदा संस्कृत ही रहेगा ।
भारत में गुरूकुल शिक्षा प्रणाली आदिकाल से है । जब से मनुष्य की उत्पत्ति हुई है ।
यह समूचे भरतखंड की सीमा त्रिविष्टिप ( तिब्बत ) से लेकर सींहल द्वीप ( श्रीलंका ) , ब्रह्मदेश ( म्यांमार ) से लेकर काम्बोज ( अफगानिस्तान ) तक थी । तो हर गाँव में कम से कम एक गुरूकुल था, किसी में तो तीन भी पाये जाते थे, हम औसतन 2 मान कर चलें तो, भारत में करीब 18 लाख के गाँव थे । तो कुल योग हुआ 18 x 2 = 36 लाख कम से कम गुरूकुल आर्यवर्त की सीमाओं में पाये जाते थे । तो पूर्व से लेकर पश्चिम तक और उत्तर से लेकर दक्षिण में श्रीलंका तक करीब इतने वैदिक गुरूकुल थे जहाँ, बच्चे शिक्षा प्राप्त करते थे । इससे अधिक भी हो सकते हैं । परंतु इससे कम नहीं ।
नालंदा विश्वविद्यालय , तक्षशिला विश्वविद्यालय, वल्लभीपुर आदि प्रसिद्ध हैं ।
आधुनिक काल में सर्व प्रथम हरिद्वार के कांगड़ी नामक गाँव में सन् 1902 में गुरूकुल की स्थापना स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती जी ने की थी ।
राष्ट्र की खोई गरिमा गुरूकुल शिक्षा प्रणाली की पुनः स्थापना करने से आयेगी ।
राम, कृष्ण, वशिष्ठ, कपिल, कणाद, भीष्म, गौतम, पतंजली, धनवंतरी, परशूराम, अर्जुन, भीम, द्रोण, याज्ञवलक्य, गार्गी, मैत्रेयी, द्रौपदी, अंजना आदि महान आत्मायें गुरूकुलों से ही हुईं हैं ।