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राजीव दीक्षित जी के बारे में

यदि आज श्री राजीव दीक्षित जिंदा होते तो अब तक शायद भारत में स्वदेशी और आयुर्वेद के सबसे बड़े ब्रांड बन चुके होते ।

पिछले ५०० सालो में राजीव दीक्षित जैसा कोई आदमी भारत में पैदा ही नहीं हुआ तो मै भी सोच में पड गया और मै उनकी इन बातों का कारन जानने के लिए हर पहलू पर विचार किया तो पाया की वास्तविकता यही है की राजीव भाई में इतनी शक्ति होते हुए भी उनकी नैतिकता का कोई शानी नहीं है।

श्री राजीव दीक्षित 30 नवंबर 1967 से 30 नवंबर 2010

मित्रो राजीव दीक्षित जी के परिचय मे जितनी बातें कही जाए वो कम है ! कुछ चंद शब्दो मे उनके परिचय को बयान कर पाना असंभव है ! ये बात वो लोग बहुत अच्छे से समझ सकते है जिन्होने राजीव दीक्षित जी को गहराई से सुना और समझा है !! फिर भी हमने कुछ प्रयास कर उनके परिचय को कुछ शब्दो का रूप देने का प्रयत्न किया है ! परिचय शुरू करने से पहले हम आपको ये बात स्पष्ट करना चाहते हैं कि जितना परिचय राजीव भाई का हम आपको बताने का प्रयत्न करेंगे वो उनके जीवन मे किये गये कार्यों का मात्र 1% से भी कम ही होगा ! उनको पूर्ण रूप से जानना है तो आपको उनके व्याख्यानों को सुनना पडेगा !!

राजीव दीक्षित जी का जन्म 30 नवम्बर 1967 को उत्तर प्रदेश राज्य के अलीगढ़ जनपद की अतरौली तहसील के नाह गाँव में पिता राधेश्याम दीक्षित एवं माता मिथिलेश कुमारी के यहाँ हुआ था। उन्होने प्रारम्भिक और माध्यमिक शिक्षा फिरोजाबाद जिले के एक स्कूल से प्राप्त की !! इसके उपरान्त उन्होने इलाहाबाद शहर के जे.के इंस्टीट्यूट से बी० टेक० और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (Indian Institute of Technology) से एम० टेक० की उपाधि प्राप्त की। उसके बाद राजीव भाई ने कुछ समय भारत CSIR(Council of Scientific and Industrial Research) मे कार्य किया। तत्पश्चात् वे किसी Research Project मे भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ० ए पी जे अब्दुल कलाम के साथ भी कार्य किया !!

राजीव भाई एक वैज्ञानिक थे और ज्ञान के भण्डार थे जिस पर उन्होंने कभी घमंड नहीं किया और सिर्फ हकीकत को जानने की कोशिश किया और उसे सबको बताया।

  • भारत की लूट के रहस्य “विदेशो में कालाधन” की सबसे पहले खुलासा किया।
  • एक प्रखर प्रवक्ता थे जो कठिन ज्ञान को भी सरल भाषा में व्याख्यान के जरिये सबको बताया।
  • राजीव भाई थे तो सैटेलाईट टेक्नोलोजी वैज्ञानिक लेकिन उन्होंने धर्म, इतिहास, राजनीति, अर्थशाश्त्र, व्यापार, विदेशियों की लूट, खदानों की लूट, रक्षा अनुसंधान, आयुर्वेद, योग, उपनिषद, ग्राम विकास, उर्जा विज्ञान. खेती, दवाए सब पर बहुत ही बारीकी से अध्ययन किया और सबको जागरूक किया।
  • राजीव भाई एक वैज्ञानिक थे और ज्ञान के भण्डार थे जिस पर उन्होंने कभी घमंड नहीं किया और सिर्फ हकीकत को जानने की कोशिश किया और उसे सबको बताया।
  • बहुत ही ईमानदार थे नैतिकता के पुजारी थे और इमानदारी से हर बात का सबूत एकत्रित किया और सबको साझा किया।
  • कभी पैसा कमाने की लाल्लसा नहीं पाली, देश के लिए ही लड़ते रहे।
  • कभी किसी से डरे नहीं और हर बात प्रमाण के साथ और शालीनता के साथ सबको बताया।
  • कभी कोई नशा, मांस-मदिरा का सेवन नहीं किया. स्वस्थ और हसमुख थे,
  • “भारत स्वाभिमान” जैसे संगठन की बाबा रामदेवजी के साथ मिलाकर निर्माण किया जो राष्ट्र निर्माण में लगा हुआ है।
  • गाय की रक्षा अभियान में बहुत काम किया बताया कैसे गोवंश भारत को महान बना देंगे।
  • विदेशो में किताबो में बंद रहस्य को सरल भाषा में भारतवासियों को बताया।

भारत के इतिहास के खुलासो को सबसे पहले बिना डरे जनता को बताया। अब क्या क्या लिखे, मै मानता हूँ, जिसने राजीव दीक्षित के व्याख्यान नहीं सुने उसकी शिक्षा ही अधूरी है, राजीव दीक्षित जी को सबसे बड़ी श्रद्धांजलि यही होगी की उनके व्याख्यानों (आडियो / वीडियो) को खुद सुने और दूसरो को सुनायें।

सवाल-जवाब

यदि आप किसी को रोटी खिलाते हैं तो उसका सिर्फ एक दिन पेट भरेगा, लेकिन आप उसे रोटी बनाने का तरीका सीखा देते हैं तो जिंदगी भर पेट भरेगा - श्री राजीव दीक्षित जी

- प्राचीन गुरूकुलों में वेद, दर्शन, उपनिषद, व्याकरण आदि आर्ष ग्रन्थ पढ़ाये जाने के साथ साथ गणित, भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, चिकित्सा, भूगोल, खगोल, अन्तरिक्ष , गृह निर्माण, शिल्प, कला, संगीत, तकनीकी, राजनीती, अर्थशास्त्र, न्याय, विमान विद्या, युद्ध, अयुद्ध निर्माण, योग, यज्ञ एवं कृषि इत्यादि जो मनुष्य के भौतिक तथा आध्यात्मिक उन्नति के लिये आवश्यक होते हैं वे सभी पढ़ाये जाते थे ।

राष्ट्र की खोई गरिमा गुरूकुल शिक्षा प्रणाली की पुनः स्थापना करने से आयेगी ।

हम सभी उच्च शिक्षा व माध्यम शिक्षा से निकले है। लेकिन जो बात हमें पढ़ाई जाती है, कि भारत सबसे ज्यादा पिछ़ड़ा देश रहा। फिर पढ़ाया जाता है कि दुनिया में सबसे ज्यादा गरीब देश भारत रहा, भारत ने दुनिया को कुछ नही दिया, फिर पढ़ाया जाता है कि यदि अंग्रेज भारत नही आते तो कुछ नही होता, अंग्रेज नही आते तो शिक्षा नही होती, अंग्रेज नही आते तो विज्ञान नही आता, अंग्रेज नही आते तो टेक्नोलॉजी नही आती, अंग्रेज नही आते तो ट्रेन नही आती, अंग्रेज नही आते तो हवाई जहाज नही होता, ऐसी बाते हम बचपन से पढ़ते आते है, सुनते आते हैं, और आपस में चर्चाये भी करते हैं। लेकिन सबसे ज्यादा दुख और दुर्भाग्य इस बात का है कि अध्यापक हम सब को यह पढ़ाते हैं।

ओटावा स्थिति इंटरनेशनल डेवेलपमेंट रिसर्च सेंटर का दावा है कि तथाकथित विकसित देशों में ही कीटनाशकों के जहर से हर वर्ष दस हजार आदमी मर जाते हैं और दूसरे चार लाख आदमी तरह-तरह के विपरीत परिणामों से पीड़ित होते हैं। ऐसे जहरों को हम क्या कहेंगे- कीटनाशक या मानव भक्षक? इनके मुख्य शिकार खेत मजदूर होते हैं। पाश्चात्य देशों में जिन पर पांबदी लगाई गयई हैं, वैसे रसायन तीसरे विश्व में उड़ेले जाने के कारण यह परिस्थिति पैदा हुई है। महाराष्ट्र तथा आंध्रप्रदेश में रूई(कपास) उगाने वाली पट्टी में इन कीटनाशकों के कारण खेत मजदूरों में अन्धत्व, कैंसर, अंगविकृतियां, लीवर के रोग तथा ज्ञानतन्तुओं के रोग होने के उदाहरण पाये गये हैं।

बहुराष्ट्रीय दवा कम्पनियों द्वारा भारी मात्रा में दवा निर्माण के कारण और उनकी खपत करवाने के कारण चिकित्सा और दवा उद्योग की कार्य प्रणाली में भारी परिवर्तन आया। दोनों एक दूसरे के पूरक बन गये। व्यावसायिक रूप से तैयार होते चिकित्सकों ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाना शुरु कर दिया। वे बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के एजेण्ट बन गये और दूसरी तरफ बहुराष्ट्रीय दवा कम्पनियों ने ढ़ेर सारे प्रलोभन और सुविधाएँ डॉक्टरों को उपलब्ध कराना शुरु कर दिया हैं।