हस्त मुद्रा चिकित्सा


ज्ञान मुद्रा

ज्ञान-मुद्रा विधि: अंगूठे, तर्जनी (पहली) अंगुली के सिरे पर लगा दें। शेष तीनों अंगुलियां सीधी रहेंगी।
स्मरण-शक्ति का विकास होता है और ज्ञान की वृद्धि होती है,
पढ़ने में मन लगता है, मस्तिष्क के स्नायु मजबूत होते हैं,
सिरदर्द दूर होता है तथा अनिद्रा का नाश, स्वभाव में परिवर्तन, अध्यात्म-शक्ति का विकास और क्रोध का नाश होता है।


वायु मुद्रा

वायु मुद्रा विधि – तर्जनी अंगुली के अग्र भाग अगूंठे के अन्तिम छोर से लगाये और अंगूठे से धीरे-धीरे दबाये।
वायु-मुद्रा का लाभ: वायु शांत होती है। लकवा, साइटिका, गठिया, संधिवात, घुटने के दर्द ठीक होते हैं।
गर्दन के दर्द, रीढ़ के दर्द तथा पारकिंसन्स रोग में फायदा होता है।


आकाश मुद्रा

आकाश-मुद्रा विधि: मध्यमा अंगुली को अंगूठे के अग्रभाग से मिलायें। शेष तीनों अंगुलियां सीधी रखें।
आकाश-मुद्रा का लाभ - कान के सब प्रकार के रोग जैसे बहरापन आदि, हड्डियों की कमजोरी तथा हृदय रोग में अप्रत्याशित लाभ होता है।
सावधानी: भोजन करते समय एवं चलते-फिरते यह मुद्रा न करें।


शून्य मुद्रा

शून्य-मुद्रा विधि: मध्यमा अंगुली को मोड़कर अंगुष्ठ के मूल में लगायें एवं अंगूठे से दबायें।
शून्य-मुद्रा का लाभ: कान के सब प्रकार के रोग जैसे बहरापन आदि दूर होकर शब्द साफ सुनायी देता है,
मसूढ़े की पकड़ मजबूत होती है तथा गले के रोग एवं थायरायड रोग में फायदा होता है।


पृथ्वी मुद्रा

पृथ्वी-मुद्रा विधि: अनामिका (तीसरी) अंगुली को अंगूठे से लगाकर रखें।
पृथ्वी-मुद्रा का लाभ: शरीर में स्फूर्ति, कांति एवं तेजस्विता आती है। दुर्बल व्यक्ति मोटा बन सकता है,
वजन बढ़ता है, जीवनी शक्ति का विकास होता है।
यह मुद्रा पाचन-क्रिया ठीक करती है, सात्त्विक गुणों का विकास करती है, दिमाग में शांति लाती है तथा विटामिन की कमी को दूर करती है।


सूर्या मुद्रा

सूर्य-मुद्रा विधि: अनामिका (तीसरी) अंगुली को अंगूठे के मूल पर लगाकर अंगूठे से दबायें।
सूर्य-मुद्रा का लाभ: शरीर संतुलित होता है, वजन घटता है, मोटापा कम होता है।
शरीर में उष्णता की वृद्धि, तनाव में कमी, शक्ति का विकास, खून का कोलेस्ट्राल कम होता है।
यह मुद्रा मधुमेह, जिगर के दोषों को दूर करती है। सावधानी: दुर्बल व्यक्ति इसे न करें। गर्मी में ज्यादा समय तक न करे।


वरूण मुद्रा

वरूण मुद्रा विधि: कनिष्ठा (छोटी) अंगुली को अंगूठे से लगाकर मिलायें।
वरूण मुद्रा का लाभ: यह मुद्रा शरीर में रूखापन नष्ट करके चिकनाई बढ़ाती है, चमड़ी चमकीली तथा मुलायम बनाती है।
चर्मरोग, रक्त विकार एवं जल-तत्व की कमी से उत्पन्न व्याधियों को दूर करती है।
मुंहासों को नष्ट करती है और चेहरे को सुंदर बनाती है। सावधानी: कफ-प्रकृतिवाले इस मुद्रा का प्रयोग अधिक न करें।


अपान मुद्रा

अपान-मुद्रा विधि: मध्यमा तथा अनामिका अंगुलियों को अंगूठे के अग्रभाग से लगा दें।
अपान-मुद्रा का लाभ: शरीर और नाड़ी की शुद्धि तथा कब्ज दूर होता है। मल-दोष नष्ट होते हैं, बवासीर दूर होता है।
वायु-विकार, मधुमेह, मूत्रावरोध, गुर्दों के दोष, दांतों के दोष दूर होते हैं।


अपानवायु या हृदय रोग मुद्रा

हृदय-रोग-मुद्रा विधि: तर्जनी अंगुली को अंगूठे के मूल में लगायं तथा मध्यमा और अनामिका अंगुलियों को अंगूठे के आगे वाले हिस्से से लगा दें।
जिनका दिल कमजोर है, उन्हें इसे प्रतिदिन करना चाहिये। दिल का दौरा पड़ते ही यह मुद्रा कराने पर आराम होता है।
पेट में गैस होने यह उसे निकाल देती है। सिरदर्द होने तथा दमे की शिकायतपर होने पर लाभ होता है। सीढ़ी चढ़ने से पांच-दस मिनट पहले यह मुद्रा करके चढ़ें।


प्राण मुद्रा

प्राण-मुद्रा विधि: कनिष्ठा तथा अनामिका अंगुलियों के अग्रभाग को अंगूठे से मिलायें।
प्राण-मुद्रा का लाभ: यह मुद्रा शारीरिक थकान दूर करती है, मन को शांत करती है, आंखों के दोषों को दूर करके ज्योति बढ़ाती है, शरीर की रोग-प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाती है,
लंबे उपवास-काल के दौरान भूख-प्यास नहीं सताती तथा चेहरे और आंखों एवं शरीर को चमकदार बनाती है। अनिद्रा में इसे ज्ञान-मुद्रा के साथ करें।


लिंग मुद्रा

लिंग-मुद्रा विधि: चित्र के अनुसार मुट्ठी बाँधें तथा बायें हाथ के अंगूठे को खड़ा रखें, अन्य अंगुलियां बंधी हुई रखें।
लिंग-मुद्रा का लाभ: शरीर में गर्मी बढ़ाती है। सर्दी, जुकाम, दमा, खांसी, साइनस, लकवा तथा निम्न रक्तचाप में लाभप्रद है, कफ को सुखाती है।
सावधानी: इस मुद्रा का प्रयोग करने पर जल, फल, फलों का रस, घी और दूध का सेवन अधिक मात्रा में करें। इस मुद्रा को अधिक लंबे समय तक न करें।


योनि मुद्रा

मध्यमा अंगुलियों के नीचे अनामिका अंगुलियों को एक-दूसरे के विपरीत रखें और उनके दोनों नाखूनों को तर्जनी अंगुली के प्रथम पोर से दबाएं।
शरीर की सकरात्मक सोच का विकास करती है और मस्तिष्क, ह्रदय और फेंफड़े स्वस्थ बनते हैं।


शक्तिपान मुद्रा

शक्तिपान मुद्रा विधि – दोनों हाथों के अंगूठे और तर्जनी अंगुली को इस तरह से मिला लें कि
पान की सी आकृति बन जाएं तथा दोनों हाथों की बची हुई तीनों अंगुलियों को हथेली से लगा ले।
ब्रेन की शक्ति में बहुत विकास होता है।